इज्जत का सिक्का | A Short Story in Hindi

Woman Wearing Blue and White Skirt Walking Near Green Grass during Daytime

रानी, छोटे से गाँव की रहने वाली थी, जहां मान-सम्मान का सिक्का सबसे बड़ा चलाता था। उसके पिताजी गाँव के सरपंच थे, जिससे रानी को कभी किसी से कोई कमी नहीं पड़ी। पर रानी का स्वभाव बिल्कुल अलग था। वो मान-सम्मान से ज्यादा मानवता में विश्वास करती थी। स्कूल में सब उसे “सरपंच की लाडली” कहकर चिढ़ाते, पर रानी इन बातों को हवा में उड़ा देती।

एक दिन गाँव में एक नया परिवार आया। वो लोग गरीब थे, उनके पास खाने-पीने को भी मुश्किल से मिलता था। गाँव के लोग उनकी गरीबी का मजाक उड़ाते, उन्हें “बाहरी” कहकर ताने देते। रानी ने ये सब देखा, उसका मन बेचैन हो गया। उसने तय किया कि वो इस परिवार की मदद करेगी।

रानी ने चुपचाप अपने घर से खाना-पीने का सामान उठाकर उनके झोपड़े तक पहुँचाई। वो रोज़ थोड़ा-थोड़ा सामान देती, जिससे किसी को पता न चले। वो उनके बच्चों को स्कूल में दाखिल करवाया, उन्हें कपड़े दिलाए। रानी की मदद से वो परिवार धीरे-धीरे अपने पैरों पर खड़ा होने लगा।

धीरे-धीरे गाँव के लोगों का रवैया भी बदलने लगा। उन्होंने देखा कि रानी की मदद से वो परिवार खुशहाल हो रहा है। अब वो उन्हें “बाहरी” नहीं, बल्कि अपने गाँव का हिस्सा मानने लगे। रानी ने बिना किसी दिखावे के, सिर्फ इंसानियत के नाते उनकी इज्जत की थी, जिसने बदले में उनका सम्मान बढ़ा दिया।

एक दिन, गाँव में मेला लगा। रानी को मेले की रानी चुना गया। सब उसके पिता के पद के कारण ऐसा कर रहे थे, पर रानी ने सबको चौंका दिया। उसने मंच पर खड़े होकर कहा, “मैं इस सम्मान की हकदार नहीं हूँ। ये सम्मान उन लोगों का है, जिन्होंने मुसीबत में एक-दूसरे का साथ दिया।”

रानी के इन शब्दों ने पूरे गाँव को झकझोर दिया। लोगों को एहसास हुआ कि असली सम्मान पैसों से नहीं, मानवता से मिलता है। उस दिन से गाँव में एक नई परंपरा शुरू हुई। हर साल “इज्जत का सिक्का” नाम का एक पुरस्कार दिया जाने लगा, जो गाँव के सबसे नेक इंसान को मिलता था।

रानी की कहानी पूरे गाँव को याद दिलाती है कि इज्जत का सिक्का किसी के पद या धन से नहीं, बल्कि उसके दिल की नेकी से तय होता है। जो दूसरों की इज्जत करते हैं, उन्हें खुद भी इज्जत मिलती है।