खुशी असली मुद्रा है


एक समय की बात है, एक ऐसा गांव था जहां सिक्के के बदले मुस्कान चलती थी। इस गांव में सभी लोग बहुत ही खुश रहते थे। वे हमेशा एक-दूसरे की मदद करते थे।

एक दिन, एक बाहरी व्यक्ति इस गांव में आया। वह बहुत ही हैरान था कि यहां लोग बिना पैसों के कैसे रहते हैं। उसने एक आदमी से पूछा, “यहां लोग बिना पैसों के कैसे रहते हैं?”

आदमी ने कहा, “हम यहां खुशी की मुद्रा चलाते हैं। हम एक-दूसरे की मदद करके खुश होते हैं।”

बाहरी व्यक्ति को यह बात बहुत अच्छी लगी। उसने भी इस गांव के लोगों की तरह रहने का फैसला किया।

बाहरी व्यक्ति ने इस गांव में बहुत अच्छा समय बिताया। वह यहां के लोगों की खुशी और दयालुता से बहुत प्रभावित हुआ।

एक दिन, बाहरी व्यक्ति को वापस अपने घर जाना था। वह बहुत उदास था कि उसे इस गांव से जाना है।

गांव के लोगों ने बाहरी व्यक्ति को बहुत याद किया। उन्होंने उसे एक विदाई पार्टी दी।

विदाई पार्टी में, बाहरी व्यक्ति ने एक भाषण दिया। उसने कहा, “मैं इस गांव में बहुत खुश रहा। यहां के लोगों ने मुझे बहुत कुछ सिखाया है। मैंने यहां खुशी की मुद्रा के बारे में जाना। मैंने जाना कि खुशी ही असली मुद्रा है।”

बाहरी व्यक्ति के भाषण से गांव के लोग बहुत खुश हुए। उन्होंने बाहरी व्यक्ति को आशीर्वाद दिया और उसे विदाई दी।

बाहरी व्यक्ति ने गांव के लोगों को कभी नहीं भुलाया। वह हमेशा इस गांव की खुशी की मुद्रा को याद रखता था।

सीख:

खुशी ही असली मुद्रा है। अगर हम खुश रहते हैं, तो हमें किसी और चीज की जरूरत नहीं होती है।