बड़े ही छोटे गाँव में एक बुद्धिमान और सजग लड़का नामक अर्जुन रहता था। उसकी माता-पिता बहुत प्रेमी और उसके साथी थे, लेकिन गरीबी के कारण उन्हें अपने सपनों की पूर्ति में कई मुश्किलें आती रहती थीं।
एक दिन, अर्जुन गाँव के बाजार में एक रहस्यमय और भविष्यवक्ता दुकान पर पहुंचा। दुकानदार ने उससे बात की और उसे एक जादुई किताब दिखाई। इस किताब का खास बात यह थी कि जिस पौधे की छवि उसमें लिखी जाती, वह पौधा जीवित हो जाता था।
अर्जुन ने उस जादुई किताब को खरीद लिया और अपने गाँव में लौट आया। उसने विचार किया कि यह कितना अद्भुत होगा अगर उसे इस किताब की मदद से गाँव की सभी समस्याओं का समाधान कर सकता है।
अर्जुन ने किताब का उपयोग करके गाँव के प्रमुख पौधों की छवियों को लिखा और वही पौधे जीवित हो गए। गाँव का मौसम हुआ बेहतर, लोगों की आय में वृद्धि हुई और सभी खुश रहने लगे।
लेकिन, यहाँ तक की खुशियाँ थीं भी कि अर्जुन ने जादुई किताब का उपयोग करके गाँव को बचाया, लेकिन उसकी ज़िम्मेदारी थी। उसे पता था कि जादू की कीमत होती है और वह इसे बरतना चाहता था।
एक दिन, अर्जुन ने दुकानदार से मिलकर वह जादुई किताब की वापसी करने की बात की। उसने कहा, “मुझे यह तो पता था कि हर जादू की कीमत होती है, और मैं चाहता हूँ कि इस कीमत को चुकाऊं।”
दुकानदार ने मुस्कराते हुए कहा, “तुमने सिखा है कि नैतिकता हमेशा आगे रहती है। तुम्हारी इस नैतिकता के लिए मैं तुम्हें इस जादुई किताब की पूरी राशि वापस कर रहा हूँ।”
अर्जुन ने कहा, “धन्यवाद, लेकिन मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण यह है कि मैंने सीखा कि हर जादू की कीमत होती है और उसे अच्छे तरीके से इस्तेमाल करना चाहिए।”
इस कहानी से हमें यह सिखने को मिलता है कि हर जादू की कीमत होती है और हमें उसे सही तरीके से इस्तेमाल करना चाहिए। नैतिकता हमेशा महत्वपूर्ण है और उसे बरतना हमारी ज़िम्मेदारी है।