गाँव के नुक्कड़ पर एक बूढ़ी औरत बैठा करती थी. उसकी झुर्रियों भरी आँखों में उदासी झलकती, हाथ थरथराते और साड़ी फटी-पुरानी. कोई उससे बात नहीं करता था, समझते थे लाचार बूढ़ी, परेशान ना करो.
एक शाम, गाँव की छोटी सी लाली वहाँ खेल रही थी. वो बिना डरे बूढ़ी के पास जा बैठी, उसकी झुर्रियों को छूते हुए पूछा, “दादी, तुम उदास क्यों हो?”
बूढ़ी औरत ने उसकी सफेद चोटी सहलाई, “बेटी, अकेली हूँ मैं. कोई बात करने वाला नहीं.”
लाली की आँखों में चमक आई, “दादी, मैं तुम्हारे साथ बात करूंगी! मेरे सपने सुनोगी तुम?”
बूढ़ी मुस्कुराई, पहली बार उस शाम को, सच्ची मुस्कान. लाली ने उसे अपने दोस्तों, स्कूल, खिलौनों के बारे में सब बताया. बूढ़ी औरत ध्यान से सुनती रही, कभी हंसती, कभी सिर हिलाती. शाम ढल गई, लाली ने जाने से पहले उसकी झुर्रियों पर हल्का सा तेल लगाया, प्यार से उसे गले लगाया.
उस दिन से, लाली हर शाम बूढ़ी के पास आती. हर रोज़ एक नई कहानी, एक नया हंसी का ठहाका. बूढ़ी की साड़ी बदल गई, थरथराते हाथों में अब लाली का लाया रूमाल बंधा होता था. उसकी आँखों से उदासी गायब हो गई, उनकी जगह चमकती थी जिंदगी की खुशियों से.
गाँव वाले चौंक गए. वो बूढ़ी औरत अब अकेली नहीं दिखती थी, वो लाली के हंसने में हंसती थी, उसके रोने में गमगीन होती थी. समझ नहीं आया किसने किस का दुःख बांटा, किसने किसकी जिंदगी जलाई.
एक दिन, लाली नहीं आई. दूसरा, तीसरा, चौथा… बूढ़ी औरत बेचैन हो गई. गाँव वालों ने खोजा, पता चला लाली बीमार थी. बूढ़ी औरत तड़प रही थी, पर चलने की ताकत नहीं थी.
उसी शाम, लाली घर लौटी. कमजोर, पर मुस्कुराती. वो सीधे बूढ़ी के पास गई. आँखों में ही बांटा सारा दुःख, सारी चिंता.
बूढ़ी औरत की आँखों में फिर लौ लौटी, जीवन की लौ. उसने थके हुए हाथ से लाली का सिर सहलाया और कहा, “बेटी, तुम ठीक हो जाओ, बस यही मेरी ख्वाहिश है.”
लाली ठीक हो गई, और गाँव वालों ने समझ लिया. ये कहानी सिर्फ एहसास की थी, दूसरों के दुःख को समझने की, सच्ची सहानुभूति की. इससे एक बूढ़ी औरत की जिंदगी रोशन हुई, एक छोटी सी बच्ची की दुनिया सिखी, और पूरे गाँव का माहौल बदला. वो सीख गए कि कभी-कभी, एक झुर्रियों भरे चेहरे पर मुस्कान लाने के लिए सिर्फ थोड़ा सा एहसास, थोड़ा सा साथ काफी होता है.